जन्म~चैत्रकृष्णपक्ष सप्तमी,29/3/1981ई.दिन शनिवार
माता-वै.श्रीमती किशोरी देवी, पिता-वै.पंडित श्री जगदीश प्रसाद मिश्र
गोत्र- वशिष्ठ, सरयू पारीण ब्राह्मण परिवार
ग्राम माधवपुर तीर ,पोस्ट-नौगवांतीर थाना-कुडवार, जनपद- सुल्तानपुर उत्तरप्रदेश
प्रारम्भिक शिक्षा-प्राइमरी से कक्षा 8तक की पढ़ाई पैतृक गांव के समीप मुडुवा ग्राम सभा के जूनियर हाईस्कूल में सम्पन्न हुई .बाल्यावस्था में माता जी परिश्रम करके श्री राम चरित मानस,धर्मग्रन्थों सहित महापुरुषों के जीवन चरित्र के आदर्श पक्ष में अभिरुचि पैदा किया पिता जी बाल्यावस्था से ही साधना का अभ्यास कराया करते थे, योगसिद्धि प्राप्त पंडित रामलगन महाराज के सुयोग्य शिष्य पंडित रामहितकारी जी जो कि संबंध में बड़े पिता लगते रहे वे श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण तथा व्यासकृत श्रीमन्महाभारत आदि का अध्ययन बाल्यकाल में ही कराया करते थे।
कक्षा 9तक की पढ़ाई आधुनिक विद्यालय में करने के पश्चात 1998ई.में पूज्य गुरुदेव वैकुण्ठ वासी स्वामी वेदान्ती नारायणाचार्य जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ,कुछ दिन के साहचर्य में ही स्वामी जी ने मंत्र दीक्षा देकर अपने उत्तराधिकारी के रूप में घोषित कर बाबा बलदेव दास जी महाराज की तपस्थली उनुरखा कुटी,अखण्डनगर, कादीपुर, जनपद सुल्तानपुर उत्तरप्रदेश जो संप्रदाय पुरुष के रूप में हैं जहां पर संस्कृत पाठशाला अद्यावधि गतिमान है उसमें अध्ययनार्थ प्रवेश कराये ।व्याकरण धारा में प्रथमा से मध्यमा पर्यन्त सुयोग्य विद्वानों की अनुकम्पा से व्याकरण सहित अन्य शास्त्रों का अध्ययन संपन्न हुआ, उच्च शिक्षा हेतु संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में रहकर शास्त्री, आचार्य पर्यन्त तत्कालीन लव्धप्रतिष्ठ विद्वानों से विविध शास्त्रों का शास्त्र श्रवण किये,रामानुज वेदांत का विशेष पारंपरिक ज्ञानार्जन हेतु 2008 ई.में महराज श्री की अनुमति से श्री रामानुजाचार्य परंपरा के श्री वेदान्तदेशिक स्वामी (बडकल)धारा का मूलमठ श्री परकाल मठ से अनुप्राणित श्री वेदान्त देशिक संस्कृत गुरुकुलम् में परंपरागत रामानुज दर्शन सहित अन्य शास्त्रों का 2011ई.तक अध्ययन करके आश्रम सुल्तानपुर में पुनरागमन हुआ,
सर्वोच्च अंक प्राप्त होने से महामहिम राज्यपाल वी एल जोशी जी ने संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में तीन स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।
श्री 1008 जगद्गुरु रामानुजाचार्य की उपाधि--2012ई.में श्री काशी विद्वत्परिषद के मान्य विद्वानों ने महामहोपाध्याय पंडित रत्न प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल की अध्यक्षता में जगद्गुरु रामानुजाचार्य की महनीय उपाधि से विभूषित किया,श्री परकाल मठ के मठाधिपति की सदिच्छा से मठ के श्रीकार्यम् स्वामी जी ने जगद्गुरु पद पर अभिषिक्त किये जाने का अनुमोदन किया एवं प्रयागराज में महाकुंभ के पवित्र अवसर पर मनीषियों,संतों एवं श्रद्धालुओं की समुपस्थिति में प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य त्रिदण्डी रंगरामानुजाचार्य की अध्यक्षता एवं परम आचार्य पूज्य त्रिदण्डी अभिनव देशिकेन्द्र रामानुजाचार्य के संरक्षकत्व में सभी ने जगद्गुरु के रूप में प्रतिष्ठितार्थ मंगलानुशासन व अनुमोदन किया।
शास्त्र सेवा के रूप में 1-नारायण सार संग्रह।
2-भगवत्समाराधन विधि।
3-प्रपन्नपारिजात । ग्रन्थों का संपादन,प्रकाशन तथा आचार्य मुखोल्लासार्थ "आचार्य वैभव"पत्रिका का संपादन एवं पूर्व से प्रकाश्यमान जिसका संपादन वैकुंठ वासी जगद्गुरु स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य सुग्रीवकिलाधीश अयोध्या, जगद्गुरु स्वामी रंग रामानुजाचार्य,विद्यावारिधि समलंकृत स्वामी महीधराचार्य बद्रिकाश्रम हिमालय एवं वैकुंठ वासी स्वामी वेदांती नारायणाचार्य जी महाराज ने किया था जो कालान्तर में मुद्रित नहीं हो पा रही थी,यह पत्रिका भगवत्साक्षात्कार संपन्न परम तपस्वी पूज्य त्रिदण्डी वेदांत रामानुजाचार्य बद्रिकाश्रम हिमालय ने अपने मंगलानुशासन से सिंचित किया था ,जिसे पुन: मुद्रित किये जाने हेतु आचार्यों का मंगलानुशासन अनुग्रह प्राप्त होने से चिरयशस्विनी देशिक-सुधा त्रैमासिक पत्रिका अद्यावधि गतिमान होकर जनता जनार्दन के हृदय का आभूषण हो रही है।